Monday, May 19, 2014

अनमोल जैविक खाद -वर्मीकम्‍पोस्‍ट (केंचुआ खाद)

अनमोल जैविक खाद
वर्मीकम्‍पोस्‍ट (केंचुआ खाद)
मिट्टी की उर्वरता एवं उत्‍पादकता को लंबे समय तक बनाये रखने में पोषक तत्‍वों के संतुलन का विशेष योगदान है, जिसके लिए फसल मृदा तथा पौध पोषक तत्‍वों का संतुलन बनाये रखने में हर प्रकार के जैविक अवयवों जैसे- फसल अवशेष, गोबर की खाद, कम्‍पोस्‍ट, हरी खाद, जीवाणु खाद इत्‍यादि की अनुशंसा की जाती है वर्मी कम्‍पोस्‍ट उत्‍पादन के लिए केंचुओं को विशेष प्रकार के गडढों में तैयार किया जाता है तथा इन केचुओं के माध्‍यम से अनुपयोगी जैविक वानस्पितिक जीवांशो को अल्‍प अवधि में मूल्‍याकन जैविक खाद का निर्माण करके, इसके उपयोग से मृदा के स्‍वास्‍थ्‍य में आशातीत सुधार होता है एवं मृदा की उर्वरा शक्ति बढ़ती है जिससे फसल उत्‍पादन में स्थिरता के साथ गुणात्‍मक सुधार होता है इस प्रकार केंचुओं के माध्‍यम से जो जैविक खाद बनायी जाती है उसे वर्मी कम्‍पोस्‍ट कहते हैं। वर्मी कम्‍पोस्‍ट में नत्रजन फास्‍फोरस एवं पोटाश के अतिरिक्‍त में विभिन्‍न प्रकार सूक्ष्‍म पोषक तत्‍व भी पाये जाते हैं।
वर्मी कम्‍पोस्‍ट के लाभ
(1) जैविक खाद होने के कारण वर्मीकम्‍पोस्‍ट में लाभदायक सूक्ष्‍म जीवाणुओं की क्रियाशीलता अधिक होती है जो भूमि में रहने वाले सूक्ष्‍म जीवों के लिये लाभदायक एवं उत्‍प्रेरक का कार्य करते हैं।
(2) वर्मीकम्‍पोस्‍ट में उपस्थित पौध पोषक तत्‍व पौधों को आसानी से उपलब्‍ध हो जाते हैं।
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(3) वर्मीकम्‍पोस्‍ट के प्रयोग से मृदा की जैविक क्रियाओं में बढ़ोतरी होती है।
(4) वर्मीकम्‍पोस्‍ट के प्रयोग से मृदा में जीवांश पदार्थ (हयूमस) की वृद्धि होती है, जिससे मृदा संरचना, वायु संचार तथा की जल धारण क्षमता बढ़ने के साथ-साथ भूमि उर्वरा शक्ति में वृद्धि होती है।
(5) वर्मीकम्‍पोस्‍ट के माध्‍यम से अपशिष्‍ट पदार्थो या जैव उपघटित कूड़े-कचरे का पुन: चक्रण (Recycling) आसानी से हो जाता है।
(6) वर्मीकम्‍पोस्‍ट जैविक खाद होने के कारण इससे उत्‍पादित गुणात्‍मक कृषि उत्‍पादों का मूल्‍य अधिक मिलता है।
वर्मीकम्‍पोस्‍ट उत्‍पादन के लिए आवश्‍यक अवयव
(1) केंचुओं का चुनाव – एपीजीक या सतह पर निर्वाह करने वाले केंचुए जो प्राय: भूरे लाल रंग के एवं छोटे आकार के होते है, जो कि अधिक मात्रा में कार्बनिक पदार्थो को विघटित करते है।
(2) नमी की मात्रा – केंचुओं की अधिक बढवार एवं त्‍वरित प्रजनन के लिए 30 से 35 प्रतिशत नमी होना अति आवश्‍यक है।
(3) वायु – केंचुओं की अच्‍छी बढ़वार के‍ लिए उचित वातायन तथा गड्ढे की गहराई ज्‍यादा नहीं होनी चाहिए।
(4) अंधेरा – केंचुए सामान्‍यत: अंधेरे में रहना पसंद करते हैं अत: केचुओं के गड्ढों के ऊपर बोरी अथवा छप्‍पर युक्‍त छाया या मचान की व्‍यवस्‍था होनी चाहिए।
(5) पोषक पदार्थ – इसके लिए ऊपर बताये गये अपघटित कूड़े-कचरे एवं गोबर की उचित व्‍यवस्‍था होनी चाहिए।
केंचुओं में प्रजनन – उपयुक्‍त तापमान, नमी खाद्य पदार्थ होने पर केंचुए प्राय: 4 सप्‍ताह में वयस्‍क होकर प्रजनन करने लायक बन जाते है। व्‍यस्‍क केंचुआ एक सप्‍ताह में 2-3 कोकून देने लगता है एवं एक कोकून में 3-4 अण्‍डे होते हैं। इस प्राकर एक प्रजनक केंचुए से प्रथम 6 माह में ही लगभग 250 केंचुए पैदा होते है।
वर्मीकम्‍पोस्‍ट के लिए केंचुए की मुख्‍य किस्‍में-
(1) आइसीनिया फोटिडा
(2) यूड्रिलस यूजीनिया
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(3) पेरियोनेक्‍स एक्‍जकेटस
गड्ढ़े का आकार – (40’x3’x1’) 120 घन फिट आकार के गढ्ढे से एक वर्ष में लगभग चार टन वर्मीकम्‍पोस्‍ट प्राप्‍त होती है। तेज धूप व लू आदि से केंचुओं को बचाने के लिए दिन में एक- दो बाद छप्‍परों पर पानी का छिड़काव करते रहे ताकि अंदर उचित तापक्रम एवं नमी बनी रहे।
वर्मी कम्‍पोस्‍ट बनाने की विधि- उपरोक्‍त आकार के गड्ढों को ढंकने के‍ लिए 4 -5 फिट ऊंचाई वाले छप्‍पर की व्‍यवस्‍था करें, (जिसके ढंकने के लिए पूआल/ टाट बोरा आदि का प्रयोग किया जाता है) ताकि तेज धूप, वर्षा व लू आदि से बचाव हो सके। गड्ढे में सबसे नीचे ईटो के टुकडो छोटे पत्‍थरों व मिट्टी 1-3 इंच मोटी त‍ह मिछाएं।
गड्ढा भरना – सबसे पहले दो-तीन इंच मोटी मक्‍का, ज्‍वार या गन्‍ना इत्‍यादि के अवशेषों की परत बिछाएं। इसके ऊपर दो- ढाई इंच मोटी आंशिक रूप के पके गोबर की परत बिछाएं एवं इसके ऊपर दो इंच मोटी वर्मी कम्‍पोस्‍ट जिसमें उचित मात्रा कोकुन (केचुए के अण्‍डे) एवं वयस्‍क केंचुए हो, इसके बाद 4-6 इंच मोटी घास की पत्तियां, फसलों के अवशेष एवं गोबर का मिश्रण बिछाएं और सबसे ऊपर गड्ढे को बोरी या टाट आदि से ढक कर रखें। मौसम के अनुसार गड्ढों पर पानी का छिड़काव करते रहें। इस दौरान गड्ढे में उपस्थित केंचुए इन कार्बनिक पदार्थो को खाकर कास्टिंग के रूप में निकालते हुए केंचुएं कड्रढे को ऊपरी सतह पर आने लगते है। इस प्रक्रिया में 3-4 माह का समय लगता है। गड्ढे की ऊपरी सतह का कालो होना वर्मी कम्‍पोस्‍ट के तैयार होने का संकेत देता है। इसी प्रकार दूसरी बार गड्ढा भरने पर कम्‍पोस्‍ट 2-3 महीनों में तैयार होने लगती है।
उपयोग विधि – वर्मी कम्‍पोस्‍ट तैयार होने के बाद इसे खुली जगह पर ढेर बनाकर छाया में सूखने देना चाहिए परन्‍तु इस बात का ध्‍यान रहे कि उसमें नमी बने। इसमें उपस्थित केंचुए नीचे की सतह पर एकत्रित हो जाते है। जिसका प्रयोग मदर कल्‍चर के रूप में दूसरे गड्ढे में डालने के लिए किया जा सकता है। सूखने के पश्‍चात वर्मीकम्‍पोस्‍ट का उपयोग अन्‍य खादों की तरह बुवाई के पहले खेत/वृक्ष के थालों में किया जाना चाहिए। फलदार वृक्ष – बड़े फलदार वृक्षों के लिए पेड़ के थालों में 3-5 किलो वर्मीकम्‍पोस्‍ट मिलाएं एवं गोबर तथा फसल अवशेष इत्‍यादि डालकर उचित नमी की व्‍यवस्‍था करें।
सब्‍जी वाली फसलें- 2-3 टन प्रति एकड़ की दर वर्मीकम्‍पोस्‍ट खेत में डालकर रोपाई या बुवाई करें।
मुख्‍य फसलें – सामान्‍य फसलों के लिए भी 2-3 टन वर्मी कम्‍पोस्‍ट उपयोग बुवाई के पूर्व करें।