जैविक खेती – जैविक खाद निर्माण विधियां
द्वितीय किश्त
Article Presented By: Zonal Public Relations Office – Gwalior Chambal Zone
जैविक खेती जीवों के सहयोग से की जाने वाली खेती के
तरीके को कहते हैं। प्रकृति ने स्वयं संचालन के लिये जीवों का विकास किया है जो
प्रकृति को पुन: ऊर्जा प्रदान करने वाले जैव संयंत्र भी हैं । यही जैविक व्यवस्था
खेतों में कार्य करती है । खेतों में रसायन डालने से ये जैविक व्यवस्था नष्ट होने
को है तथा भूमि और जल-प्रदूषण बढ़ रहा है। खेतों में हमें उपलब्ध जैविक साधनों की
मदद से खाद,
कीटनाशक दवाई, चूहा नियंत्रण हेतु दवा
बगैरह बनाकर उनका उपयोग करना होगा । इन तरीकों के उपयोग से हमें पैदावार भी अधिक
मिलेगी एवं अनाज, फल सब्जियां भी विषमुक्त एवं उत्तम
होंगी । प्रकृति की सूक्ष्म जीवाणुओं एवं जीवों का तंत्र पुन: हमारी खेती में
सहयोगी कार्य कर सकेगा ।
जैविक खाद बनाने की विधि
अब हम खेती में इन सूक्ष्म
जीवाणुओं का सहयोग लेकर खाद बनाने एवं तत्वों की पूर्ति हेतु मदद लेंगे । खेतों
में रसायनों से ये सूक्ष्म जीव क्षतिग्रस्त हुये हैं, अत: प्रत्येक फसल में
हमें इनके कल्चर का उपयोग करना पड़ेगा, जिससे फसलों को
पोषण तत्व उपलब्ध हो सकें ।
दलहनी फसलों में प्रति एकड़ 4 से 5 पैकेट राइजोबियम कल्चर डालना
पड़ेगा । एक दलीय फसलों में एजेक्टोबेक्टर कल्चर इनती ही मात्रा में डालें । साथ ही
भूमि में जो फास्फोरस है, उसे घोलने हेतु पी.एस.पी.
कल्चर 5 पैकेट प्रति एकड़ डालना होगा ।
खाद बनाने के लिये कुछ तरीके नीचे दिये
जा रहे हैं,
इन विधियों से खाद बनाकर खेतों में डालें । इस खाद से
मिट्टी की रचना में सुधार होगा, सूक्ष्म जीवाणुओं की संख्या
भी बढ़ेगी एवं हवा का संचार बढ़ेगा, पानी सोखने एवं धारण करने की
क्षमता में भी वृध्दि होगी और फसल का उत्पादन भी बढ़ेगा । फसलों एवं झाड पेड़ों के
अवशेषों में वे सभी तत्व होते हैं, जिसकी उन्हें आवश्यकता होती
है :-
नाडेप विधि
नाडेप का आकार :- लम्बाई 12 फीट चौड़ाई 5 फीट उंचाई 3 फीट आकार का गड्डा कर लें।
भरने हेतु सामग्री :- 75 प्रतिशत वनस्पति के सूखे
अवशेष,
20 प्रतिशत हरी घास, गाजर घास, पुवाल, 5 प्रतिशत गोबर, 2000 लिटर पानी ।
सभी प्रकार का कचरा छोटे-छोटे टुकड़ों में
हो । गोबर को पानी से घोलकर कचरे को खूब भिगो दें । फावडे से मिलाकर गड्ड-मड्ड कर
दें ।
विधि नंबर -1 - नाडेप में कचरा 4 अंगुल भरें । इस पर मिट्टी 2 अंगुल डालें । मिट्टी को भी
पानी से भिगो दें । जब पुरा नाडेप भर जाये तो उसे ढ़ालू बनाकर इस पर 4 अंगुल मोटी मिट्टी से ढ़ांप
दें ।
विधि नंबर-2- कचरे के ऊपर 12 से 15 किलो रॉक फास्फेट की परत
बिछाकर पानी से भिंगो दें । इसके ऊपर 1 अंगुल मोटी मिट्टी बिछाकर
पानी डालें । गङ्ढा पूरा भर जाने पर 4 अंगुल मोटी मिट्टी से ढांप
दें ।
विधि नंबर-3- कचरे की परत के ऊपर 2 अंगुल मोटी नीम की पत्ती हर
परत पर बिछायें। इस खाद नाडेप कम्पोस्ट में 60 दिन बाद सब्बल से डेढ़-डेढ़
फुट पर छेद कर 15 टीन पानी में 5 पैकेट पी.एस.बी एवं 5 पैकेट एजेक्टोबेक्टर कल्चर
को घोलकर छेदों में भर दें । इन छेदों को मिट्टी से बंद कर दें ।
केंचुआ खाद
छायादार स्थान में 10 फीट लम्बा, 3 फीट चौड़ा, 12 इंज गहरा पक्का ईंट सीमेन्ट का ढांचा बनायें । जमीन से 12 इंच ऊंचे चबूतरे पर यह
निर्माण करें । इस ढांचे में आधी या पूरी पची (पकी) गोबर कचरे की खाद बिछा दें ।
इसमें 1न्1न्1
फीट में 100 केंचुऐ डालें । इसके ऊपर
जूट के बोरे डालकर प्रतिदिन सुबह, शाम पानी डालते रहें ।
इसमें 60 प्रतिशत से ज्यादा नमी ना रहे दो माह बाद यह खाद
बन जायेगी । जिसका 15 से 20
क्विंटल प्रति एकड़ की दर से इस खाद का उपयोग करें।
बीजोपचार
1. प्रति एकड़ बीज हेतु 3 से 5 लीटर देशी गाय का खट्टा
मठ्ठा लें । इसमें प्रति लीटर 3 चने के आकार के बराबर हींग
पीस कर घोल दें । इसे बीजों पर डालकर भिगों दें तथा 2 घंटे रखा रहने दें । उसके
बाद बोयें । इससे उगरा नियंत्रित होगा ।
2. 3 से 5 लीटर गौ मूत्र में बीज भिगोकर 2 से 3 घंटे रखकर वो दें । उगरा
नहीं लगेगा । दीमक से भी पौधा सुरक्षित रहेगा।
मटका खाद
गौ मूत्र 10 लीटर, गोबर 10 किलो, गुड 500 ग्राम, बेसन 500 ग्राम- सभी को मिलाकर मटके
में भकर 10 दिन सड़ायें फिर 200 लीटर पानी में घोलकर गीली
जमीन पर कतारों के बीच छिटक दें । 15 दिन बाद पुन: इस का छिड़काव
करें।
कीट नियंत्रण
1. देशी गाय का मट्ठा 5 लीटर लें । इसमें 3 किलो नीम की पत्ती या 2 किलो नीम खली डालकर 40 दिन तक सड़ायें फिर 5 लीटर मात्रा को 150 से 200 लिटर पानी में मिलाकर छिड़कने
से एक एकड़ फसल पर इल्ली /रस चूसने वाले कीड़े नियंत्रित होंगे ।
2. लहसुन 500 ग्राम,
हरी मिर्च तीखी चिटपिटी 500 ग्राम लेकर बारीक पीसकर 150 लीटर पानी में घोलकर कीट
नियंत्रण हेतु छिड़कें ।
3. 10 लीटर गौ मूत्र में 2 किलो अकौआ के पत्ते डालकर 10 से 15 दिन सड़ाकर, इस मूत्र को आधा शेष बचने तक
उबालें फिर इसके 1 लीटर मिश्रण को 150 लीटर पानी में मिलाकर रसचूसक
कीट /इल्ली नियंत्रण हेतु छिटकें।
इन दवाओं का असर केवल 5 से 7 दिन तक रहता है । अत: एक बार और छिड़कें जिससे कीटों की दूसरी पीढ़ी भी
नष्ट हो सके।
बेशरम के पत्ते 3 किलो एवं धतूरे के तीन फल फोड़कर 3 लिटर पानी में उबालें । आधा पानी शेष बचने पर इसे छान लें । इस छने
काढ़े में 500 ग्राम चने डालकर उबालें। ये चने चूहों के
बिलों के पास शाम के समय डाल दें। इससे चूहों से निजात मिल सकेगी।
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